बुधवार, 11 जनवरी 2012

मुमताज (Mumtaj)

जब मुमताज सामने
हो तो ताज नहीं बनता
अभाव बेहाली दर्द
देते नहीं झूठे सपने
करते साक्षात्कार
यथार्थ से वे
कल्पनाएँ नहीं
अभिव्यक्ति होती है
आगोश में सुख चैन के
दर्द कांटों सा मिलता नहीं
सामने हो मुमताज तो
ताज बनता नहीं
प्रेरणा परिकल्पना सब कुछ है
आलम है की दो कदम पैर से
चलना है दुश्वार
झूठ कहते हैं सब
सच कहने को अब
सुकरात कोई पैदा होता नहीं
जानते हैं पीना होगा प्याला-ए-जहर
ऐसा कोई त्याग दिखलाता नहीं
जब सामने हो मुमताज तो
ताज बनता नहीं

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