मंगलवार, 24 नवंबर 2020

दीपक

देह को देहरी बना कर
दीप एक ऐसा जला लो
अर्थ हो न हो,  परमार्थ हो
ईश से मन को लगा लो
देह को दीपक बना लो
लौ प्रभु से लगा लो
जीवन समर्पित हो प्रभु में
आस अब ऐसी जगा लो

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

आंकलन (Aankalan)

इस दुनिया का आंकलन उल्टा है
अजंता एलोरा में वह कला है
खजुराहो में जीवन दर्शन है
फिल्मों में मात्र प्रदर्शन है
लेकिन आम जिंदगी में नग्नता है
देह दर्शन है

पर्दा (Parda)

परदे शालीनता के मत उतारो
वर्ना आदि मानव बन जाओगे
पराये नहीं अपनों में ही ठगे जाओगे
प्रत्यक्ष में तुम्हे रूप की देवी बताएँगे
परोक्ष में आलोचना की सेज पर सुलाएंगे

स्वागत गीत (Swagat geet; Welcome Song)

अतिथि आपके स्वागत में
कुसुमित बहारें आयी हैं
मन है प्रफुल्लित प्रमुदित सा 
खुशियों के सितारे लायी है
मन आज हमारा स्पंदित है
सरगम की तान सुहानी है
अधरों पर आतुर तरुणाई सी
मन प्राण भावनी आयी है

अतिथि आपके स्वागत में
कुसुमित बहारें आयी हैं


पवन बजाते शेहनाई हैं
शीतल मंदिम अरुणाई है
प्रतीक्षा है सबको नयनों से
मन भावन निशा आयी है

अतिथि आपके स्वागत में
कुसुमित बहारें आयी हैं


हो जीवन में कुछ ना मुश्किल
पग पग पर शान निराली हो
आधार स्तम्भ हम सब के
दाग दाग पर खुशहाली हो

अतिथि आपके स्वागत में
कुसुमित बहारें आयी हैं


मन निकेत हो मधुबन के
श्रद्धा का तुम भाव लिये
राधा की कृष्ण से भक्ति सा
तव स्वागत में नत मस्तक है

अतिथि आपके स्वागत में
कुसुमित बहारें आयी हैं
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स्वागत गीत 



बुधवार, 11 जनवरी 2012

मुमताज (Mumtaj)

जब मुमताज सामने
हो तो ताज नहीं बनता
अभाव बेहाली दर्द
देते नहीं झूठे सपने
करते साक्षात्कार
यथार्थ से वे
कल्पनाएँ नहीं
अभिव्यक्ति होती है
आगोश में सुख चैन के
दर्द कांटों सा मिलता नहीं
सामने हो मुमताज तो
ताज बनता नहीं
प्रेरणा परिकल्पना सब कुछ है
आलम है की दो कदम पैर से
चलना है दुश्वार
झूठ कहते हैं सब
सच कहने को अब
सुकरात कोई पैदा होता नहीं
जानते हैं पीना होगा प्याला-ए-जहर
ऐसा कोई त्याग दिखलाता नहीं
जब सामने हो मुमताज तो
ताज बनता नहीं

भारहीन (bharheen)

एक हल्की फुल्की
पत्नी ने पति से कहा
प्रियतम मानो मैं भारहीन हूँ |
जवाब आया प्रिये वर्तमान में
तुम भार और मैं हीन हूँ |